प्रजनक बीज उत्पादन
वर्ष 1949 में जब भाकृअनुप-के.आ.अनु.सं. की स्थापना हुई, उस समय आलू के लिए कोई बीज प्रमाणीकरण मानक नहीं थे। संस्थान ने ही व्यवस्थित बीज उत्पादन कार्यक्रम शुरू किया। हिमाचल प्रदेश की ऊंची पहाड़ियां स्वस्थ बीज प्राप्त करने का पारंपरिक स्रोत थीं लेकिन उत्पादित बीज की मात्रा देश की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।आलू के बीज उत्पादन में एक बड़ी सफलता बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी के विकास के साथ मिली, जिसमें उत्तर भारतीय मैदानों में न्यून एफिड अवधि के दौरान बीज फसल उत्पादन शामिल है। एफिड एक कीट संवाहक है जो आलू विषाणु और रोगों को फैलाता हैं। इस तकनीक के विकास से पूर्व, आलू के बीज हेतु मुख्य स्रोत उच्च पहाड़ियां, मध्य पहाड़ियां और उत्तर पूर्वी मैदान थे।
यद्यपि उच्च पहाड़ियों में उत्पादित बीज, स्वास्थ्य मानकों के अनुसार था, लेकिन सुप्तावस्था के कारण मैदानों में मुख्य फसल के रूप में इसका प्रयोग उपयुक्त नहीं था। मध्य पहाड़ियों और उत्तर-पूर्वी मैदानों में उत्पादित बीज स्वस्थ नहीं थे। यह विषाणु और बैक्टीरिया विल्ट रोगज़नक के सुप्त संक्रमण का संचार करते थे । इस तकनीक के आगमन के साथ नवीन बीज उत्पादक क्षेत्र भी उभरे जिन्होंने निम्न लाभ भी दिए:
इसके माध्यम से मैदानों में स्वस्थ बीज का उत्पादन संभव हो पाया, जिसके परिणामस्वरूप, उत्तर पश्चिमी मैदान उच्च गुणवत्ता वाले बीज का उत्पादन करने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा।
मैदानी इलाकों में उत्पादित बीजों को शीत गृह में रखा जाता है। भंडारण के दौरान, यह निष्क्रिय हो जाता है और शीत गृह से बाहर निकलने पर शीघ्र ही इसमें अंकुरण होने लगता है। अत: दैहिक रूप से मैदानी इलाकों में यह प्रारंभिक या मुख्य फसल के रूप में लगाने के लिए सही है। मैदानी इलाकों में बीज उत्पादन, गंभीर रोगजनकों से होने वाले जीवाणुविल्ट और मिट्टी जनित बीमारियों और कीटों से मुक्त है।
पहाडों और मैदानों से प्राप्त उपयुक्त दैहिक अवस्था वाले बीज की उपलब्धताने किसानों को विभिन्न मौसम में स्वस्थ आलू फसल उत्पादन के चयन में छूट प्रदान की।
पिछले दशक के दौरान, भाकृअनुप-के.आ.अनु.सं. और एआईसीपीआईपी ने बीज उत्पादन के लिए एवं किसानों द्वारा4-5 वर्षों के लिए बीज के भंडारण हेतु क्षेत्रों की पहचान की थी। संस्थान अपने क्षेत्रीय केन्द्रो अर्थात कुफरी, जालंधर, मोदीपुरम, पटना और ग्वालियर में मूल बीज का उत्पादन करता है। वाणिज्यिक खेती के बीज भंडार से विषाणुओं को खत्म करने के लिए आधुनिक जैवप्रौद्योगिकी तकनीकों का उपयोगकिया जाता है।वर्तमान में,भाकृअनुप-के.आ.अनु.सं वार्षिक रूप से2550 टन मूल बीज का उत्पादन करता है और किसानों को उपलब्ध कराने और आगे इसकी बढोतरी के लिएकेंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों को लगभग 2000 टन की आपूर्ति करता है।.इसकी उच्च गुणवत्ता के कारण, संस्थान द्वारा उत्पादित मूल बीज, आलूबीज प्रमाणीकरण के उच्च मानकों की पूर्ति करता है और इसके बीज उत्पादन कार्यक्रम को दुनिया में सर्वश्रेष्ठमाना जाता है। पिछले दस वर्षों के दौरान, हिसार, फैजाबाद, कानपुर, दीसान्द कोटा की बीज उत्पादन के लिए अनुकूल क्षेत्र के रूप में पहचान की गई है।यह भी पाया गया कि बीज उत्पादन तकनीक का पालन कर उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों और मध्य मैदानी इलाकों के किसान पांच साल तक और गुज़रात और पश्चिम बंगाल के किसान चार साल तक उत्पादकता घटाये बिना, अपने बीजो का रखरखाव कर पा रहे हैं।यह खेती की लागत में भी अत्यधिककमी लाने में सहायक हो सकता है।
वर्तमान में,भाकृअनुप-के.आ.अनु.सं वार्षिक रूप से2550 टन मूल बीज का उत्पादन करता है और इसकी बढोतरी के लिएकेंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों को लगभग 2000 टन की आपूर्ति तीन चरणो अर्थात आधार I, आधार II, प्रमाणित बीज,में करता है, । प्रत्येक चरण में इसकी गुणन दर 6 गुना होती है।इस प्रकार 2000 टन प्रजनक बीज2000 * 6 * 6 * 6 = 432000 टन प्रमाणित बीज प्रदान करते है। इस प्रकार स्वदेशी बीज उत्पादन प्रणाली, देश के कम से कम यूएस $ 432000 * 1120 = 483840000 यायूएस$484 मिलियनजो 17424 मिलियन रुपये के बराबरहै, सालाना बचा रही है। स्वदेशी बीज किसानों के लिए 5000-7000 रुपये यानी यूएस $ 139 से 194 प्रति टन की दर पर उप्लब्ध है, जबकि पड़ोसी देशों में इसकी कीमत यूएस $ 1120-1200 प्रति टन है।