उपलब्धियां
अनुसंधान संबंधी उपलब्धियां
- विभिन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों में खेती के लिए उपयुक्त महत्वपूर्ण कृषि विशेषताओ के संयोजन वाले कुल 50 उच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास कर उन्हे जारी किया गया। इनमें से, 43 घर में प्रयोग के उद्देश्य से, 6 प्रसंस्करण के लिए और 1 गर्मी सहिष्णु किस्म थी। के.आ.अनु.सं द्वारा जारी किस्में देश के कुल आलू उत्पादन क्षेत्र के लगभग 95% भाग में लगाई जाती हैं।
- संस्थान में स्थापित जर्मप्लाज्म संग्रह जिसमें 3900 से अधिक जंगली और खेती वाले आलू प्रजातियां हैं जिन्हे 30 देशों से एकत्रित किया गया है ।
- आलू जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टियम (पीजीएससी) के हिस्से के रूप में के.आ.अनु.सं ने आलू के जटिल जीनोम और उच्च प्रभाव के सम्बन्ध में व्याख्या की और नामी पत्रिका ’नेचर’ में इसकी विस्तृत जानकारी प्रकाशित हुई है ।
- 9 बेहतर प्रजनन लाईनों को उच्च आनुवंशिक स्टॉक के रूप में विकसित और पंजीकृत किया है जिसमें कीटों और रोगों के लिए प्रतिरोध और ठन्ड से होने वाली मिठास में कमी होती है।
- ट्रांसजेनिक आलू को स्थायी गुणो अर्थात् पिछेता झुल्सा प्रतिरोधी, ठंड प्रेरित मिठास में कमी, विषाणु प्रतिरोध आदि के साथ तदनुकूल विकसित किया गया|
- आनुवंशिक रूप से भिन्न 77 सोलेनम ट्यूबरोसम एसएसपी एन्डिजीना अभिगम को दर्शाने वाला एक मुख्य सेट 740 विदेशी परिमाणों का रूपात्मक, कृषि विज्ञान, रोग और कीट विवरणकों के आधार पर विकसित किया गया ।
- आलू सोलनम ट्यूबरोसम डायफ्लॉइड सी -13 (+) एस एटुबेरोसम, और सी -13 + एस. पिनाटिसेक्टम प्रतिरोधी आलू विषाणु Y और पिछेता झुलसा के माध्यम से प्रोटोप्लास्ट संलयन जिससे प्लोइड और एंडोस्पर्म बैलेंस नंबर (ईबीएन) में अंतर दिखता है, से दो अंतर-विशिष्ट दैहिक संकर को विकसित और पंजीकृत किया गया।
- ट्रिपकलैक्स स्थिति में पीवी वाय में अत्यधिक प्रतिरोध जीन वाले एक अद्वितीय पैतृक लाइन को विकसित और एनबीपीजीआर के साथ पंजीकृत किया गया ।एमएएस के माध्यम से 14 जीनोटाइप की पहचान की गई जिसमें पिछेता झुलसा, पीवीवाई और सिस्ट नेमाटोड के लिए विविध प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता है।
- चार गर्मी सहिष्णु एवं उत्कृष्ट कृषि गुण वाले क्लोन अर्थात सीपी 4054, सीपी 4184, सीपी 4197 सीपी 4206 की पहचान की गई। इन्हें मल्टी-लोकेशन टेस्टिंग के लिए एआइसीआरपी में पेश किया गया है।
- देश की विभिन्न कृषि-जलवायु हेतु उर्वरक प्रयोग और आलू के अन्य संवर्धन पद्धतियो के सम्बंध में अनुशंसा तैयार की गई।
- देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए लाभदायक आलू आधारित फसल प्रणाली और उनके संसाधन के प्रबंधन हेतु रणनीतियों की पहचान की गई।विकसित कृषि औजार, जिसमें एक ऑसिलेटिंग ट्रे प्रकार आलू ग्रेडर, उर्वरक एप्लीकेटर- लाइन मार्कर, आलू कल्टी-रिजर्, मृदा क्रस्ट ब्रेकर्, दानेदार कीटनाशक एप्लीकेटर, दो / चार पंक्ति वाली स्वचालित आलू बोने की मशीन, आलू खुदाई उपकरण , चरण I और II प्रजनक बीज के लिए औजार और एरोपोनिक इकाइयां शामिल हैं। एक निर्णय समर्थन उपकरण "आलू कीट प्रबंधन" विकसित किया गया है जो कीट या बीमारी की समस्या की पहचान करता है और निवारक उपायों और उसकी स्थिति के अनुरूप नियंत्रण के लिए अनुशंसा प्रदान करता है।
- एक निर्णय समर्थन उपकरण "आलू की फसल निर्धारण के लिए कंप्यूटर समर्थित सलाहकार प्रणाली" को विकसित किया गया है, जो भारत में लगभग 1500 स्थानों के लिए 10 किस्मों की अलग-अलग अवधि में रोपण की 5 तिथियों, रोपण के बाद 60,70,80 और 90 दिनों की अनुमानित उपज क्षमता सम्बंधी जानकारी प्रदान करता है।
- स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (इसरो) अहमदाबाद के सहयोग से रिमोट सेंसिंग, जीआईएस और फसल मॉडलिंग का उपयोग करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर उन्नत आलू की पैदावार और उत्पादन के आकलन के लिए एक पद्धति का विकास किया गया है। कृषि मंत्रालय के फसल कार्यक्रम के तहत आलू के उत्पादन और उत्पादन के आकलन के लिए इस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
- क्षेत्र, उत्पादन, उत्पादकता आदि और प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त आलू के लिए क्षेत्र, तुषारावरण प्रवृत्त क्षेत्र इत्यादि के सम्बन्ध में जिला स्तर पर आलू के आँकड़ों के स्थानिक डाटाबेस् के विषयगत मानचित्र बनाना।
- एक "आलू ई-पुस्तक" बनाई गई है और उसका अद्यतन संस्थान की वेबसाइट पर किया गया जिसमें सरल भाषा में आलू पद्धतियो के बारे में जानकारी प्रदान की गयी है ।
- उप-उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन पद्धतियो के विकास के लिए आइएआरआइ, नई दिल्ली के सहयोग से "इंफोक्रोप - आलू" मॉडल विकसित किया।पहाडी और मैदानों क्षेत्रों के लिए पिछेता झुलसा पूर्वानुमान मॉडल (JHULSA CAST) विकसित किया गया। इस मॉडल के आधार पर, निर्णय समर्थन प्रणाली भी विकसित की गई है जिसमें तीन घटक हैं अर्थात् पूर्वानुमान, कवकनाशकों के आधार पर आधारित अनुप्रयोग और उपज हानि का आकलन। इसके अलावा, मैदानों के लिए एफिड-फोरकास्टिंग मॉडल भी विकसित किया गया है।
- पांच प्रमुख आलू वायरस, अर्थात पीवीवाई, पीवीएक्स, पीवी, पीवीएस और पीवीएम का क्षेत्र स्तर पर पता लगाने के लिए पोर्टेबल डिपस्टिक किट का विकास किया गया है।
- एलिसा, आईएसईएम और नैश जैसी संवेदनशील विषाणु डिटेक्शन तकनीक विकसित की गई है, जो रोपण सामग्री में विषाणु या वायरायड्स की कम सांद्रता का पता लगाने में काफी मदद करती है। बीज उत्पादन में इन विधियों का प्रयोग व्यवहारिक रूप से बुनियादी / नाभिक बीज में विषाणु की मौजूदगी को खत्म करने के लिए किया जाता है ।
- बीज भंडार में आलू विषाणु, वाइरॉयड, बैक्टीरियल विल्ट और पिछेता झुलसा का पता लगाने के लिए पीसीआर आधारित प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं।
- एक जैव-उर्वरक-सह-जैव-कीटनाशक निर्माण (बायो-बी -5) की पहचान की गई है जिसे पर्यावरण के अनुकूल मिट्टी और कंद जनित रोगों के प्रबंधन एवं उपज को बढ़ाने हेतु इसे पेटेंट कराया गया है।
- पिछेता झुलसा , बैक्टीरियल विल्ट, विषाणु, मिट्टी और कंद जनित रोग, कंद कीट और सिस्ट नेमाटोड के प्रबंधन के लिए पद्धतियो का एकीकृत पैकेज विकसित किया गया।
- बीज प्लॉट तकनीक विकसित की गयी और मैदानी और पहाडी क्षेत्रों के लिए एक राष्ट्रीय रोग मुक्त बीज आलू उत्पादन कार्यक्रम आरम्भ किया गया।
- ऊतक संवर्धन और एरोपोनिक के माध्यम से उच्च तकनीक बीज उत्पादन प्रणाली का विकास और मानकीकरण किया गया ।
- काली रूसी एवं सामान्य स्कैब जैसे कंद जनित रोगो की जांच के लिए कार्बन -मरक्यूरिलय का बोरिक एसिड (3%), एक सुरक्षित विकल्प,से प्रतिस्थापन।
- एफ़िड सर्वेक्षणों का संचालन किया जिससे बीज आलू उत्पादन हेतु निम्न एफिड अवधि की पहचान हुई|
- सफेद सुंडी के प्रबंधन के लिए विकसित जैव- प्रखर प्रबंधन अनुसूची तैयार की गयी ।
- गैर प्रशीतित भंडारण में अंकुरण पर रासायनिक नियंत्रण की दक्षता का प्रदर्शन किया और कृषि भंडारण प्रौद्योगिकियों पर न्यून लागत का मानकीकरण किया।
- आलू के कई स्वदेशी मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे चिप्स, फ्रेंच फ्राइज़, आटा, फ्लेक्स, कस्टर्ड और क्यूब्स को विकसित किया।
- प्रयोगशाला से ज़मीन पर, ओआरपी, टीएडी, आईवीएलपी और अन्य कार्यक्रमों जैसे प्रशिक्षण, प्रदर्शन, किसान मेंला और ऑल इंडिया रेडियो पर आलू स्कूल के माध्यम से आलू प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित किया गया।
- आलू उत्पादन, क्षेत्र, पैदावार और कीमतों पर देश और राज्यवार आंकड़े एकत्र कर उनको बनाए रखा गया।
- कुफरी फ्राइसोना को विकसित करके मैसर्स मैक्केन फूड इंडिया प्रा. लिमिटेड, गुजरात के सहयोग से इसकी लोकप्रियता को बढाया और फ्रेंच फ्राइज़ श्रृंखला को मजबूत किया।
पिछले वर्षों के दौरान महत्वपूर्ण उत्पाद और परिणाम