परिचय
भारत में आलू अनुसंधान औपचारिक रूप से 01 अप्रैल, 1935 से इंपीरियल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के अंतर्गत शिमला, कुफरी (दोनोंशिमला की पहाडियों पर) एवं भोवाली (कुमाऊँ पहाड़ियों) में खोले गये प्रजनन एवं बीज उत्पादन केंद्रों के साथ शुरु हुआ| सन् 1945 में, भारत सरकार के तत्कालीन कृषि सलाहकार सर हर्बर्ट स्टीवर्ड और सर फिरोज एम.खरेगट, सचिव, कृषि मंत्रालय के तत्वावधान में केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान की स्थापना के लिए एक योजना तैयार की गई । डॉ बी.पी. पाल, डॉ एस.रामानुजम, डॉ. पुष्करनाथ, डॉ. आर.एस. वासुदेव ने योजना के निर्माण और संस्थान की स्थापना में अहम भूमिका निभाई| डॉ. एस. रामानुजम, जो उस समय आईएआरआई में द्वितीय आर्थिक वनस्पतिशास्त्री के रूप में कार्यरत थे, जिन्हें सन् 1946 में इस योजना को लागू करने के लिए विशेष कर्तव्य पर अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था।संस्थान की स्थापना अगस्त 1949 में पटना में बिहार सरकार द्वारा प्रदत्त पुरानी एक मंज़िला, बैरेकरूपी इमारत में की गई |आईएआरआई के अंतर्गत आने वाली तीन लघु इकाईयों, नामत: शिमला में स्थित आलू प्रजनन केंद्र, कुफरी में स्थित बीज प्रमाणन केंद्र एवं भोवाली में स्थित आलू गुणन केंद्र, को नवीन स्थापित भाकृअनुप-केआअनुसं के साथ विलय किया गया|संस्थान के मुख्यालय को वर्ष 1956 में शिमला, हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया जिससे संकरण कार्य सुगम बनाया जा सके और बीज स्वास्थ्य का बेहतर रखा जा सके। देश में उसके पश्चात आलू की फसल में हुई वृद्धि और विकास ने फिर कभी पीछे मुडकर नहीं देखा | पंचवर्षीय योजनाओ के दौरान योजनाबद्ध अनुसंधानात्मक प्रयासों को दिये गये समर्थन एवं मजबूती के परिणमस्वरूप उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आलू के उत्पादन में भारत, विश्व में अग्रणी देश के रूप में उभरा| वर्ष 1949-50 में 0.23 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में आलू का उत्पादन 1.54 मिलियन टन था जो उछाल के साथ वर्ष 2012-13 में बढकर 1.96 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 45 मिलियन टन हो गया, जिससे भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश बन गया।
आलू (सोलनमट्यूबरोसमएल) गेहूं, मक्का और चावल के बाद सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है, जो विश्व में खाद्य और पोषण सुरक्षा में योगदान देता है।सोलनेसी वंश के इस कंद की फसल में लगभग 200 जंगली प्रजातियां है|इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेंरिका की उच्च रेडियन पहाड़ियों में हुई, जहाँ से इसे पहली बार 16 वीं शताब्दी के अंत में स्पेनिशशासको के माध्यम से यूरोप में लाया गया था। वहां आलू को एक समशीतोष्ण फसल के रूप में विकसित किया गया और बाद में यूरोपीय देशों के औपनिवेशिक विस्तार के परिणामस्वरूप यह दुनिया भर में पहुंच गया था। 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में संभवतः ब्रिटिश मिशनरियों या पुर्तगाली व्यापारियों के माध्यम से इसे भारत में लाया गया था।